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जाति व्यवस्था मुगल और अंग्रेजो की देन

#जाति_व्यवस्था_मुगल_और_अंग्रेजो_की_देन आशु पटेल (1) गौत्र वर्ण वंश और  जाति को समझें #गौत्र सनातन वैदिक काल में गौत्र अपनाने की परंपरा रही। गौत्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहे। संतान को गौत्र पिता से मिलता था। एक कबीले के लोगों का गौत्र समान था। गौत्र परंपरा एक कबीलाई संस्कृति से उत्पन्न बनी। एक कबीला अपनी पहचान के लिए एक गौत्र को अपनाता था। समान गौत्र में शादी संबंध नहीं होता था।गौत्र के नाम ऋषि व प्राकृतिक आराध्य के नाम पर आधारित होते थे। लेकिन ऋषि के नाम पर गौत्र रखना ज्यादा प्रचलित था। जो कबीला जिस ऋषि को या प्राकृतिक पदार्थ को आराध्य मानता था उसी  के नाम पर  गौत्र का नाम दे देता था। #वर्ण वैदिक व्यवस्था में चार वर्ण हुए। जो कर्म आधारित थे। जिससे कारण एक ही गौत्र वाले कबीले में वर्ण अलग अलग हो गए। मतलब एक ही गौत्र के समूह में कुछ ब्राम्हण, तो कुछ क्षत्रिय वैश्य शुद्र हो गए। आज भी आपको विभिन्न अलग अलग जातियो में समान गौत्र मिल जाएगे। जैसे कश्यप गौत्र राजपूत बनिया ब्राम्हण व अन्य जातियों में भी मिल जाएगा। अंतर वर्ण विवाह तो होते थे लेकिन समान गौत्र में शादी अभी भी नहीं होती थी। वैदिक

पेरियार ने संविधान क्यों जलाया था?

#जब_पेरियार_ने_जलाया_था_संविधान चंद्र भानु यादव 26 नवंबर (1957)  इतिहास में इस दिन 1957 में पेरियार के अनुयायियों और तमिलनाडु के लोगों ने भारतीय संविधान के प्रावधानों को जला दिया जो कि जाति की रक्षा करते हैं । 3 नवंबर 1957 को तंजावुर (तमिलनाडु) में ने कड़गम के एक विशेष सम्मेलन में पेरियार ने पूछा कि क्या जाति एक स्वतंत्र देश में मौजूद हो सकती है? इसके बाद उसने पूछा, क्या ऐसा देश जहां जाति व्यवस्था मौजूद है, एक स्वतंत्र देश कहा जा सकता है? आजतक कोई, या बुद्धिजीवी पंडितों का जवाब नहीं दे सकता था । इसके अलावा, पेरियार ने संकल्प पारित किया कि भारतीय संविधान में जो उपबंध जाति  की रक्षा करते हैं, उन्हें हटा दिया जाना चाहिए; 15 दिन की समय सीमा दी, असफल रहा, जो संविधान के हिस्से को 26 नवंबर (1957) को जलाया जाएगा. ). उन्होंने 26 नवंबर के उसी दिन को चुना जब भारतीय संविधान 1949. में अपनाया गया था । 26 नवंबर 1957 को लगभग 10000 लोगों ने भारतीय संविधान को जला दिया । तीन हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया । 6 महीने से 3 साल तक कठोर imprisionment, वे में । सभी प्रकार के लोग, गरीब, दैनिक म

अम्बेडकर और इस्लाम

#अम्बेडकर_और_इस्लाम_1 पवन प्रजापति यह बात तो लगभग सभी जानते हैं कि बाबासाहब अम्बेडकर हिन्दुइज्म के मुखर आलोचक थे, वे हिन्दूधर्म मे व्याप्त वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के घोर निन्दक थे! उन्होने हिन्दुत्व पोल खोलती हुई एक किताब 'Riddles in hinduism' भी लिखी थी, पर अम्बेडकर के इस्लाम पर क्या विचार थे, यह बहुत कम लोग ही जानते है! अम्बेडकर इस्लाम के आलोचक थे या प्रशंसक, यह जानने के लिये उन्ही की किताबों का अध्ययन करना जरूरी है! अम्बेडकर के हिन्दूविरोधी होने के नाते आज तमाम हिन्दूवादी संगठन अम्बेडकर का भी विरोध करते थे, पर शायद यह कम लोग ही जानते है कि अम्बेडकर इस्लाम के भी बड़े आलोचक थे! तमाम अम्बेडकरवादी संगठन बाबासाहब के हिन्दुत्व पर विचारों का प्रचार तो करते हैं, पर इस्लाम पर कही गयी और लिखी गयी उनकी बातों को छुपाते हैं! अम्बेडकर हिन्दुधर्म के पाखण्ड और इस्लाम की कट्टरता, दोनो के विरोधी थे! उन्होने अपनी किताब "पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन" मे इस्लाम की खुलकर आलोचना की है, पर भीमवादी और बामसेफी इस बात को यह सोचकर दबाते हैं कि हिन्दुओं के खिलाफ जो एक दलित-मुस्लिम

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति

 हिन्दू शब्द की उत्पत्ति, हिंदू शास्त्रो में हिन्दू शब्द भारत में अधिकाशं लोग हिन्दू हैं। हिन्दू एक धर्म के रुप में भा माना जाता है। अधिकतर लोग सनातन धर्म को हिन्दू धर्म मानते हैं। वहीं कुछ लोग यह कहते हैं कि हिन्दू शब्द सिंधु से बना है औऱ यह एक फारसी शब्द है। पर ऐसा कुछ नहीं है हमारे वेदो और पुराणों में हिन्दू शब्द का उल्लेख मिलता है। आज हम आपको इसी की जानकारी साक्षा करेंगे जो हमें एक सांस्कृतिक लेख से मिली है।   1. ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है…… “हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं । तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।। अर्थात : हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं |   2. सिर्फ वेद ही नहीं……बल्कि..मेरूतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है….. “हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये।” अर्थात : जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं   3. और इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है : ” हीनं दुष्यति इति हिन्दू ।” अर्थात जो अज्ञानत

मूलनिवासी बहुजन शब्द संविधान में नहीं है। इसलिए इनका विरोध करिए

मूलनिवासी बहुजन शब्द का विरोध क्यो जरूरी है 1. मूलनिवासी, बहुजन, दलित ये सभी शब्द संविधान में नहीं लिखा है। ये पूरी तरह से गैर संवैधानिक है। 2. जो लोग संविधान को मानते हैं उन्हें मूलनिवासी बहुजन दलित जैसो शब्दों का विरोध करना चाहिए। 3. भारत में संविधान लागू है। संविधान में हो होगा उसे ही मानेगे। बहुजन मूलनिवासी दलित शब्द संविधान में है ही नहीं इसलिए इसका विरोध करें। 4. मूलनिवासी दलित बहुजन कोई समुदाय नहीं है और ना ही कोई जाति धर्म है। ये राजनीति के लिए बनाया गया शब्द है ।  इसलिए मूलनिवासी बहुजन दलित जैसे संविधान विरोधी शब्दों का पुरजोर विरोध करिए। हम सब भारतीय है। संविधान हमें भारतीय बनाता है। इसलिए मूलनिवासी बहुजन जैसे शब्दों का पुरजोर विरोध करिए। #ObcVoice #ObcEktaaManch #ScStObcHinduUnity #HamBahujanNahiHai #WeAreIndian

शुद्र बनाने की सनक

#शुद्र_बनाने_की_सनक_क्यों? आइए जानते हैं कि बहुजन, मूलनिवासी विचारधारा राजनीति वाले शुद्र बनाने की सनक में क्यों होते हैं दरअसल ये पूरी राजनीति वामपंथी गिरोह ने नफरत के आधार पर तैयार कि। जिसका आधार गुस्सा, नफरत, और बदला लेने की भावना है। पहले sc, st, obc को नीच, अछूत, शोषित, मरा पिटा बताना। फिर बाम्हन  को दोषी ठहराना फिर उनसे बदला लेने के लिए उकसाना। इन सबके लिए जरूरी है कि sc, st, obc खुद को शुद्र माने। अगर sc, st, obc शूद्र मानना बंद कर दिए तो फिर मूलनिवासी, बहुजन राजनीति कि दुकान बंद हो जाएगी। इसलिए जब भी कोई sc, st, obc खुद को शुद्र मानने से इंकार करता है तो सभी बहुजन मूलनिवासी विचारधारा वाले उस पर टूट पडते है उसे जबरन शुद्र साबित करने में   लग जाते हैं। सिम्पल सी बात है ये पूरी बहुजन मूलनिवासी राजनीति ही शूद्र पर टिकी है। शुद्र  बोलो पर नीचा बोलो, फिर कहो शुद्र के साथ ये हुआ वो हुआ। ये आत्याचार हुआ वो आत्याचार हुआ। फलाना ढिमाका आदि। और इसी नफरत की कहानी सुनाकर अपना वोटबैंक तैयार करते हैं। वर्ण व्यवस्था जन्म आधारित नहीं है। कर्म आधारित है लेकिन ये बहुजन मूलनिवासी जन्म आधारित वर्

Article 16 in The Constitution Of India 1949

Article 16 in The Constitution Of India 1949 16. Equality of opportunity in matters of public employment (1)  There shall be equality of opportunity for all citizens in matters relating to employment or appointment to any office under the State (2)  No citizen shall, on grounds only of religion, race, caste, sex, descent, place of birth, residence or any of them, be ineligible for, or discriminated against in respect or, any employment or office under the State (3)  Nothing in this article shall prevent Parliament from making any law prescribing, in regard to a class or classes of employment or appointment to an office under the Government of, or any local or other authority within, a State or Union territory, any requirement as to residence within that State or Union territory prior to such employment or appointment (4)  Nothing in this article shall prevent the State from making any provision for the reservation of appointments or posts in favor of any backward class of c